रविवार, 18 नवंबर 2018

बटवारे के समय कैसे तय हुई भारत-पाकिस्तान की सीमा

नमस्कार दोस्तो मैं Av Hindi Creator आज आपको बताने जा रहा हूँ भारत और पाकिस्तान कि सीमा का बटवारा आखिर कैसे हुआ, तो जानने के लिऐ पढते रहीऐ पोस्ट को अन्त तक।

बटवारे के समय कैसे तय हुई भारत-पाकिस्तान की सीमा 

bhar or pakistan ki sima kyse tey huyi, How to Decided India or Pakistan Border
भारत और पाकिस्तान कि सीमा का निर्धारण

दोस्तो भारत और पाकिस्तान दोनों ही अलग देश है और यह बात सबको पता है कि पहले यह दोनों देश एक हुआ करते थे लेकिन जब से इन्हें आजादी मिली तब से यह दोनों मुल्क अलग हो गए लेकिन कुछ लोगों के मन में अभी भी यह विचार आता है कि जब यह दोनों देश अलग हुए तो कैसे तय हुआ था कि किस देश की सीमा कहां तक होगी और दोनों देशों के बॉर्डर कहां-कहां होंगे तो आज हम आपको यही बताते हैं कि जब यह दोनों मुल्क आजाद हुए थे तो इन दोनों मुल्कों की सीमा कैसे निर्धारित की गई थी । तो आइए बताते हैं आपको -

1.कैसे हुआ बटवारा

भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में "फूट डालो और राज्य करो" की नीति का अनुसरण किया। उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा। उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति।
20वीं सदी आते-आते मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।
सन् 1906 में ढाका में बहुत से मुसलमान नेताओं ने मिलकर मुस्लिम लीग की स्थापना की। इन नेताओं का विचार था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम अधिकार उपलब्ध थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती थी। मुस्लिम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मांगें रखीं। 1930 में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इक़बाल ने एक भाषण में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई। 
1935 में सिंध प्रांत की विधान सभा ने भी यही मांग उठाई। इक़बाल और मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने मुहम्मद अली जिन्ना को इस मांग का समर्थन करने को कहा। इस समय तक जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में लगते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि कांग्रेसी नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे। लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ़ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं।

2.हिन्दू महासभा

हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के प्रबल विरोधी थे, लेकिन मानते थे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद हैं। 1937 में इलाहाबाद में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में एक भाषण में वीर सावरकर ने कहा था - 
आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान। 
कांग्रेस के अधिकतर नेता पंथ-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के विरुद्ध थे। महात्मा गांधी का विश्वास था कि हिन्दू और मुसलमान साथ रह सकते हैं और उन्हें साथ रहना चाहिये। उन्होंने विभाजन का घोर विरोध किया: "मेरी पूरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं। ऐसे सिद्धांत का अनुमोदन करना मेरे लिए ईश्वर को नकारने के समान है। बहुत सालों तक गांधी और उनके अनुयायियों ने कोशिश की कि मुसलमान कांग्रेस को छोड़ कर न जाएं और इस प्रक्रिया में हिन्दू और मुसलमान गरम दलों के नेता उनसे बहुत चिढ़ गए।


3.अंग्रेजों कि योजना

अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के प्रति शक को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में सिधी कार्यवाही दिवस मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे किये, जिसमें करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए। ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में न आ जाए।अंग्रेजों ने यह पहले ही भाप लिया था कि यह दोनों मुल्क हमेशा आपस में लड़ते रहेंगे क्योंकि इन दोनों मुल्कों का बंटवारा ही धर्म के नाम पर हो रहा है।
जब भारत और पाकिस्तान अंग्रेजों से आजाद हुए थे तो तब यह देश सिर्फ भारत ही कहलाया करता था उस समय पाकिस्तान नहीं था और पाकिस्तान आजादी के बाद बना पाकिस्तान पूरी तरीके से धर्म पर निर्धारित देश था पाकिस्तान के सबसे बड़े नेता कहे जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना ने उस समय भारत के राष्ट्रपिता गांधी से कहा था कि मुसलमानों ने सब की गुलामी सही है और अब हम मुस्लिम किसी हिंदू की गुलामी नहीं सहेंगे इसलिए हमें अपना अलग एक देश चाहिए तो तभी गांधी जी ने उनकी बात को स्वीकार लिया था और तभी से पाकिस्तान देश का जन्म हुआ लेकिन सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान देश कैसे निर्धारित किया गया कि यहां पाकिस्तान देश होगा

4.कैसे हुआ सीमा का निर्धारण


भारत के विभाजन के ढांचे को '3 जून प्लान' या माउण्टबैटन योजना का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की।
असल में जैसा कि हमने आपको बताया कि पाकिस्तान देश के बुनियाद ही धर्म के नाम पर रखी गई थी तो जिस शहर में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी थी वह शहर पाकिस्तान में शामिल हो गया और वहीं वहीं पाकिस्तान फैल गया जैसे कि इस्लामाबाद लाहौर आती इन सब में बाहुल्य मुस्लिम आबादी थी जिसके कारण यह सभी पाकिस्तान का हिस्सा बने और हिंदुस्तान मैं वह शहर शामिल हुए जो कि धर्मनिरपेक्ष देश है और जहां सभी धर्मों के लोग रहते थे

18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। इस समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली।

ब्रिटिश भारत की संपत्ति को दोनों देशों के बीच बाँटा गया लेकिन यह प्रक्रिया बहुत लंबी खिंचने लगी। गांधीजी ने भारत सरकार पर दबाव डाला कि वह पाकिस्तान को धन जल्दी भेजे जबकि इस समय तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरु हो चुका था और दबाव बढ़ाने के लिए अनशन शुरु कर दिया। भारत सरकार को इस दबाव के आगे झुकना पड़ा और पाकिस्तान को धन भेजना पड़ा।२२ अक्टूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी। नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के इस काम को उनकी हत्या करने का एक कारण बताया।

जब धर्म के नाम पर किसी का बंटवारा होता है तो वह बिल्कुल भी खुश नहीं रहता वह आज तक भी यह दोनों देश सीमा विवाद के ऊपर लड़ते हैं जिसका मुख्य कारण कश्मीर है ।

0 टिप्पणियाँ: