मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

कैसे हुई थी श्री कृष्ण की मृत्यु

                ।। जय श्री कृष्णा।।

नमस्कार दोस्तो एक बार फिर स्वागत हैं आपका ।
मैं अमित वैष्णव (Av hindi Creator) आज आपके लिए लेकर आया हु एक बेहद रोचक ब्लॉग , हम में से लगभग सभी लोग श्रीकृष्ण के जन्म के बारे में तो जानते  है लेकिन क्या आप लोग जानते हो कि उनकी मृत्यु कैसे हुई ?
आज के ब्लॉग में , मैब आपको यही बताने वाला हूं।
तो पढ़ते रहिये इस ब्लॉग को अंत तक।

तो चलिए शुरू करते है-





हम सब जानते है की श्री कृष्ण भगवान थे, तो उनकी मृत्यु असंभव है. लेकिन भगवान होने के बावजूद भी श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई ? आज हम इसी रहस्य पर से पर्दा उठाएंगे और आप को भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु का कारण पूरी जानकारी के साथ बतायेंगे।



1.कुछ बाते श्री कृष्ण के बारे में:-

.भगवान श्री कृष्ण विष्णु भगवान के 22 वे अवतार थे. इन्होने द्वापरयुग में अधर्मियों का नाश करने के लिए जन्म लिया था. श्री कृष्ण के पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी था. श्री कृष्ण ने कारागार (जेल) में जन्म लिया था. भगवान श्री कृष्ण ने अपने इस जन्म के दोरान अपने मामा कंश का वध कर शांति की स्थापना की ! महाभारत युद्ध के दोरान अर्जुन के सारथि बनकर दुनिया को गीता का पाठ पढ़ाया. युधिष्ठिर को राजा बनाकर धर्म की स्थापना की।




2.किस कारण हुई श्री कृष्ण की मौत ? :-

हिन्दू पोराणिक कथाओ में कई पेचीदा कहानियां प्रचलित है. लेकिन श्री कृष्ण की मृत्यु के बारे में आज भी बहुत ही कम लोगो को पता है. हम सब जानते है की भगवान कृष्ण का जन्म कैसे हुआ. लेकिन क्या आप जानते है की श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी ?

महाभारत युद्ध में जब दुर्योधन मारा गया तब उसकी माता गंंधारी ने श्री कृष्ण को श्राप देते हुए कहा, यदि तुम चाहते तो इस युद्ध को रोक सकते थे. लेकिन तुमने भाइयो को एक-दुसरे से युद्ध करने दिया. गांधारी ने क्रोध में आकर श्री कृष्ण को कहा आपकी मृत्यु आज से 36 वर्ष बाद एकांत में होगी. और पूरा यदुवंश का विनाश हो जाएगा.।



3.कैसे हुई श्रीकृष्ण की मौत और किसने की? :-

गांधारी के श्राप से विनाशकाल आने के कारण श्रीकृष्ण द्वारिका लौटकर यदुवंशियों को लेकर प्रयास क्षेत्र में आ गये थे।

यदुवंशी अपने साथ अन्न-भंडार भी ले आये थे। कृष्ण ने ब्राह्मणों को अन्नदान देकर यदुवंशियों को मृत्यु का इंतजार करने का आदेश दिया था। कुछ दिनों बाद महाभारत-युद्ध की चर्चा करते हुए सात्यकि और कृतवर्मा में विवाद हो गया।
सात्यकि ने गुस्से में आकर कृतवर्मा का सिर काट दिया। इससे उनमें आपसी युद्ध भड़क उठा और वे समूहों में विभाजित होकर एक-दूसरे का संहार करने लगे।
इस लड़ाई में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और मित्र सात्यकि समेत सभी यदुवंशी मारे गये थे, केवल बब्रु और दारूक ही बचे रह गये थे।
यदुवंश के नाश के बाद कृष्ण के ज्येष्ठ भाई बलराम समुद्र तट पर बैठ गए और एकाग्रचित्त होकर परमात्मा में लीन हो गए। इस प्रकार शेषनाग के अवतार बलरामजी ने देह त्यागी और स्वधाम लौट गए।

बहेलिये का तीर लगने से हुई श्रीकृष्ण की मृत्यु



बलराम जी के देह त्यागने के बाद जब एक दिन श्रीकृष्ण जी  पीपल के नीचे ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे, तब उस क्षेत्र में एक जरा नाम का बहेलिया आया हुआ था। जरा एक शिकारी था और वह हिरण का शिकार करना चाहता था। जरा को दूर से हिरण के मुख के समान श्रीकृष्ण का पेर का तलवा दिखाई दिया।
 बहेलिए ने बिना कोई विचार किए वहीं से एक तीर छोड़ दिया जो कि श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लगा। जब वह पास गया तो उसने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में उसने तीर मार दिया है। इसके बाद उसे बहुत पश्चाताप हुआ और वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीकृष्ण ने बहेलिए से कहा कि जरा तू डर मत, तूने मेरे मन का काम किया है। अब तू मेरी आज्ञा से स्वर्गलोक प्राप्त करेगा।
बहेलिए के जाने के बाद वहां श्रीकृष्ण का सारथी दारुक पहुंच गया। दारुक को देखकर श्रीकृष्ण ने कहा कि वह द्वारिका जाकर सभी को यह बताए कि पूरा यदुवंश नष्ट हो चुका है और बलराम के साथ कृष्ण भी स्वधाम लौट चुके हैं।
अत: सभी लोग द्वारिका छोड़ दो, क्योंकि यह नगरी अब जल मग्न होने वाली है। मेरी माता, पिता और सभी प्रियजन इंद्रप्रस्थ को चले जाएं। यह संदेश लेकर दारुक वहां से चला गया। इसके बाद उस क्षेत्र में सभी देवता और स्वर्ग की अप्सराएं, यक्ष, किन्नर, गंधर्व आदि आए और उन्होंने श्रीकृष्ण की आराधना की। आराधना के बाद श्रीकृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए और वे सशरीर ही अपने धाम को लौट गए।
श्रीमद भागवत के अनुसार जब श्रीकृष्ण और बलराम के स्वधाम गमन की सूचना इनके प्रियजनों तक पहुंची तो उन्होंने भी इस दुख से प्राण त्याग दिए। देवकी, रोहिणी, वसुदेव, बलरामजी की पत्नियां, श्रीकृष्ण की पटरानियां आदि सभी ने शरीर त्याग दिए। इसके बाद अर्जुन ने यदुवंश के निमित्त पिण्डदान और श्राद्ध आदि संस्कार किए।
इन संस्कारों के बाद यदुवंश के बचे हुए लोगों को लेकर अर्जुन इंद्रप्रस्थ लौट आए। इसके बाद श्रीकृष्ण के निवास स्थान को छोड़कर शेष द्वारिका समुद्र में डूब गई। श्रीकृष्ण के स्वधाम लौटने की सूचना पाकर सभी पाण्डवों ने भी हिमालय की ओर यात्रा प्रारंभ कर दी थी। इसी यात्रा में ही एक-एक करके पांडव भी शरीर का त्याग करते गए। अंत में युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुंचे थे।



4.कौन था "जरा" नाम का शिकारी:-
जरा नाम का शिकारी राजा बाली थे।भगवान विष्णु के 21 वे अवतार राम भगवान ने जब वन में छुपकर वानर राज़ बाली को मार दिया था. तब बाली की मौत से उसकी पत्नी तारा बहुत दुखी हुई थी. और उसने क्रोध में आकर राम भगवान को श्राप देते हुए कहा था की जिस प्रकार तुमने मेरे पति को छिपकर मारा है, उसी प्रकार अगले जन्म में मेरा पति तुम्हे छिपकर मारेगा।



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यह आने के लिऐ  धन्यवाद।।

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